राजस्थान का भूगोल -भाग-1
भौगोलिक स्थिति- 2303 उत्तरी अक्षांश से 30012 उत्तरी
अक्षांश तक
69030 पूर्वी देशान्तर से 78017
पूर्वी देशान्तर तक
राजस्थान की सबसे लंबी सीमा मध्यप्रदेश से तथा सबसे कम पंजाब से जुडती है।
राजस्थान का मानचित्र आकार विषमकोण चतुर्भुज है।
राजस्थान की सीमा पाँच राज्यों को स्पर्श करती है।
राजस्थान का क्षेत्रफल भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.74 % है।
अंतर्राष्ट्रीय सीमा को छूने वाले राजस्थान के जिले- गंगानगर, बीकानेर, बाडमेर, जैसलमेर।
(1)उत्तर पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश
इसमें राजस्थान का लगभग 61.11 प्रतिशत क्षेत्रफल आता है। इस प्रदेश को को
भू-आकृतिक लक्षणों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जाता सकता है-
(i)शुष्क मरूस्थल
यह क्षेत्र 25 सेमी वार्षिक वर्षा रेखा के पश्चिम में स्थित है। बालू रेत के
फैलाव एवं अधिकता के कारण इसे ‘थली‘ भी कहा जाता है। धरातलीय विविधता
के आधार पर इस भूमि को तीन उपविभागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(1)रेतीला मरूस्थल- बीकानेर, जैसलमर, बाडमेर
इस संपूर्ण मरूस्थल में बालुका स्तूपों के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती
है जिसमें वर्षा का पानी भर जाने के कारण अस्थायी झीलों दलदली भूमि का निर्माण हो
जाता है। जिसे टाट या रन कहा जाता है।
(2)पथरीला मरूस्थल- (हम्मादा)- जोधापुर, बाडमेर, जालोर,
जैसलमेर
(3)मिश्रित मरूस्थल -(रैग)- जैसलमेर
(ii)अर्द्धशुष्क मैदान (राजस्थान
बांगर)
(क)
नागौरी उच्च प्रदेश – साँभर, डीडवाना आदि नमक झीले इसी प्रदेश में पायी जाती हैं।
इस प्रदेश में सोडियम तत्त्व की अधिकता होने से यह बंजर व रेतीला प्रदेश है।
(ख)शेखावाटी क्षेत्र-यह संपूर्ण क्षेत्र अन्तःप्रवाही है जो चूरू, सीकर तथा झुन्झुनुँ जिलों में फैला
हुआ है। इस क्षेत्र में कच्चे व पक्के कुओं का निर्माण जल प्राप्ति के लिए किया
जाता है जिसे ‘जोहड‘ या ‘नाड़ा‘ कहा जाता है।
(ग) घग्घर क्षेत्र - इस क्षेत्र का
विस्तार गंगानगर तथा हनुमानगढ़ जिलों के सबसे उत्तरी भागों में है। घग्घर नदी के
पाट को राजस्थान में ‘नाली‘ कहा जाता है।
(घ) लूनी बेसिन (गोंडवाड़ा बेसिन) -
पाली, सिरोही, जोधापुर, जालोर आदि जिलों मे विस्तृत इस
क्षेत्र की सभी नदियाँ अंशाकालीन हैं।
(2)मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय
प्रदेश
अरावली पर्वत-श्रृंखला का अधिकांश भाग उदयपुर जिले में स्थित है । राजस्थानी
भाषा में अरावली पर्वत को ‘Ada-Vata’ कहा जाता है। अरावली श्रेणी उत्तर-पूर्व में दिल्ली
के समीप से दक्षिण-पश्चिम में पालनपुर (गुजरात) तक चौडाई लिए हुए विस्तृत है।
अरावली प्रदेश को तीन लघु भागों में बांटा जा सकता है-
(क) उत्तरी अरावली क्षेत्र- इस
पर्वत श्रृंखला में शेखावाटी निम्न पहाड़ियाँ तथा जयपुर और अलवर की पहाड़ियाँ
सम्मिलित है। यह प्रदेश जयपुर के उत्तरी -पश्चिमी भागों में तथा अलवर जिले के
अधिकांश भागों में स्थित है।
(ख) मध्य अरावली क्षेत्र- मध्य
अरावली क्षेत्र मुख्य रूप से अजमेर जिले में विस्तृत है। तारागढ़ इस क्षेत्र की
सबसे ऊँची पर्वत चोटी है।
(ग) दक्षिणी अरावली क्षेत्र - इस
क्षेत्र में सिरोही, उदयपुर, डूँगरपुर व पाली जिले का कुछ भाग सम्मिलित हैं।
(3)पूर्वी मैदानी प्रदेश
इस मैदान को दक्षिण में मेवाड़ का मैदान तथा उत्तर में मालपुरा करौली का मैदान
कहा जाता है। इनके उच्च भू-भाग टीलेनुमा हैं जिसके कारण इसे पीडमान्ट मैदान भी का
जा सकता है। इस प्रदेश को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है-
(क) बनास बेसिन- यह बेसिन मुख्यतः
चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक आदि जिलों में विस्तृत है।
(ख) चम्बल बेसिन- चम्बल बेसिन
मुख्यतः कोटा, बूँदी और झालावाड़ जिलों में स्थित
है। चम्बल में कटे-फटे तथा ऊबड़-खाबउ़ भूमि को ‘डांग’ कहते है।
(ग) मध्य-माही बेसिन (छप्पन का मैदान)- इसे बांगड़ क्षेत्र भी कहते हैं। यह बेसिन
बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़
जिले के दक्षिण भाग व उदयपुर के दक्षिणी-पूर्वी भाग में विस्तृत है।
(4)दक्षिणी-पूर्वी पठारी
प्रदेश/हाडौ़ती/लावा पठार
अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित इस प्रदेश का विस्तार
बूँदी, कोटा, बारां, झालावाड़, धौलपुर आदि जिलों में है। हाड़ौती
पठार के अन्तर्गत ऊपरमाल का पठार और मेवाड़ का पठार सम्मिलित हैं। यह पठारी प्रदेश
दो भागों में बांटा जा सकता है-
(क) विंध्य कगार भूमि- दक्षिणी -पूर्वी भाग में मुख्यतः धौलपुर तथा कारौली
जिलों में बनास और चम्बल नदी के बीच स्थित यह भाग बलुआ पत्थर से निर्मित है।
(ख) दक्कन लावा पठार- इसका विस्तार दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के कोटा, बूँदी, बारां, बाँसवाड़ा, झालावाड़ आदि जिलों में है।